कुछ गुमान हमको भी था तुम पर
अपनी किस्मत की दाद देते थे हम भी
पर आज कुछ ऐसा कर गुज़रे हो तुम
कि होंठ चुप हैं और आँख है नम भी
जिन बाहों में आसरा ढूँढा किये
जिस किनारे पे कश्ती लगाने का सहारा था
उसी की आँधियों ने डगमगा दिया
वोह सब कुछ छिन गया जो हमारा था
इस भीड़ में ये कैसी तन्हाई है
यूँ सिमट हैं गए रौशनी के एहसास भी
नहीं जानते अब कहाँ जायेंगे
दूर दूर तक नज़र आता ना ठिकाना कोई
क्यूंकि आज कुछ ऐसा कर गुज़रे हो तुम
कि होठ चुप हैं और आँख है नम भी
4 comments:
Did you write that yourself?
@Gunj - yeah :)
Oh I love the last couplet <3
Such a good piece =]
@Crystal - Thanks :) And welcome to my blog!
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